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दौलत के नियम

रिचर्ड टेंपलर (अनुवादक सुधीर दीक्षित)

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :246
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7848
आईएसबीएन :9788131717981

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इसे पढ़कर आप अधिक अमीर, समृद्ध और सुखी बन सकते हैं...

Daulat Ke Niyam - A Hindi Book - by Richard Templar

समृद्धि के गोपनीय रहस्य

धन दुनिया को चलाता और घुमाता है। हम सभी मन ही मन यक़ीन करते हैं कि यह हमें सुखी बना सकता है। आख़िर, इतनी दौलत कौन नहीं चाहेगा कि पैसे की चिंता न करनी पड़े ? इतनी दौलत कि आप अपने सपनों का आलीशान मकान या बेहतरीन कार ख़रीद सकें—या बस इतनी कि आपको यह सोचना न पड़े कि आप कितना ख़र्च कर रहे हैं ? सवा यह है कि दौलतमंद लोग अमीर कैसे बनते हैं ? क्या यह किस्मत की बात है ? या फिर वे कोई ऐसी बात जानते हैं, जो हम नहीं जानते हैं ?

हाँ, वे ऐसी ही बात जानते हैं। वे दौलत के नियम जानते हैं।
रिचर्ड टेंपलर आपको अमीर बनाने के संकल्प के साथ आए हैं। अपनी बेहतरीन कलम से वे उन सरल स्वर्णिम नियमों पर से पर्दा हटाते हैं, जो दौलत उत्पन्न करते और बढ़ाते हैं।

दौलत के नियम में अमीरों के व्यवहार, मानसिकता, जीवनशैली और वित्तीय ज्ञान का बेहतरीन विश्लेषण किया गया है। इसे पढ़कर आप अधिक अमीर, समृद्ध और सुखी बन सकते हैं।

धन एक विचार है। आप हक़ीकत में इसे देख या छू नहीं सकते हैं (जब तक कि आपके हाथ में सोने की सिल्ली न हो)। आप बस इसके किसी भौतिक प्रतीक को देख या छू सकते हैं, जैसे नोट या चेक। कहने को तो ये सिर्फ़ काग़ज़ के टुकड़े हैं, लेकिन बहुत शक्तिशाली हैं।

धन के बारे में हममें से ज़्यादातर लोगों की अपनी-अपनी राय होती है, जैसे यह अच्छा या बुरा है, इसकी इच्छा अच्छी या बुरी है, इसका प्रेम अच्छा या बुरा है, इसे ख़र्च करना अच्छा या बुरा है।

मैं पहले कुछ नियमों में यह सुझाव दूँगा कि शायद धन के बारे में हमारे विचार ही हमें दौलतमंद बनने से रोक रहे हैं। अगर हमें अपने दिल में (भले ही अवचेतन रूप से) यक़ीन हो कि धन बुरी चीज़ है और बहुत ज़्यादा धन तो बहुत ही बुरी चीज़ है, तो संभवतः हम दौलतमंद बनने की अपनी कोशिशों को अनजाने में ही विफल कर रहे हैं।

मैं यह भी जानना चाहूँगा कि दौलतमंद बनने के लिए आप कितनी मेहनत करने के लिए तैयार हैं। यह कुछ हद तक खेल जैसा है—आप जितना ज़्यादा अभ्यास करेंगे, उतने ही बेहतर बनते जाएँगे। आप आलसी होकर दौलतमंद नहीं बन सकते। आपको मेहनत तो करनी पड़ेगी।

आपको गहराई से यह भी जानना होगा कि आप क्या चाहते हैं और क्यों चाहते हैं, आप इसे कैसे पाने वाले हैं, इसे पाने के बाद आप इससे क्या करने वाले हैं—इसी तरह की बातें। आपसे किसने कहा था कि दौलतमंद बनना आसान काम है...

नियम 1

कोई भी पैसे कमा सकता है—
धन भेदभाव नहीं करता है


धन के बारे में एक बहुत प्यारी बात यह है कि यह सचमुच किसी से भेदभाव नहीं करता है। इसे इस बात की परवाह नहीं होती है कि आपका रंग या जाति क्या है, आप किस वर्ग के हैं, आपके माता-पिता क्या करते थे, या आपकी अपने बारे में क्या राय है। हर दिन कोरी स्लेट के साथ शुरू होता है। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि बीते कल में आपने क्या किया था। हर दिन नया होता है। आपके पास भी बाक़ी लोगों जितने ही अधिकार और अवसर होते हैं। आप दौलत के भंडार में से जितना चाहें, उतना ले सकते हैं। आपको जो इकलौती चीज़ रोके रखती है, वह आप ख़ुद हैं और धन के बारे में आपकी मिथ्या धारणाएँ (देखें नियम 5)।

आपके पास भी बाक़ी लोगों जितने ही अधिकार और अवसर होते हैं। आप दौलत के भंडार में से जितना चाहें, उतना ले सकते हैं

दुनिया के हर इंसान के पास उतनी ही दौलत है, जितनी वह भंडार में से लेता है। इसके अलावा और कहा भी क्या जा सकता है ? ऐसा कोई तरीक़ा नहीं है, जिससे पैसा यह जान सके कि यह किसके पास है, वह कितना पढ़ा-लिखा है, उसकी महत्वाकांक्षाएँ क्या हैं या वह किस वर्ग का है। पैसे के कान, आँख या इंद्रियाँ नहीं होती हैं। यह निर्जीव, निष्क्रिय और भावहीन होता है। इसे कुछ भी पता नहीं होता है। यह तो उपयोग या ख़र्च किए जाने के लिए होता है। बचाने और निवेश करने के लिए होता है। लड़वाने, लुभाने और मेहनत करवाने के लिए होता है। इसके पास भेदभाव करने की कोई मशीन नहीं होती है, इसलिए यह निर्णय नहीं कर सकता है कि आप इसके ‘हक़दार’ हैं या नहीं।

मैंने बहुत से दौलतमंद लोगों को क़रीब से देखा है। उन सबमें यही एक समानता होती है कि उनमें कोई समानता नहीं होती है—ज़ाहिर है, इन नियमों के खिलाड़ी होने के अलावा। दौलतमंद लोग अलग-अलग क़िस्म के होते हैं—जिसके अमीर होने की संभावना सबसे कम दिखती है, वह बहुत दौलतमंद निकल सकता है। वे सभ्य से लेकर असभ्य तक हो सकते है, समझदार से लेकर निरे मूर्ख तक हो सकते हैं, योग्य से लेकर अयोग्य तक हो सकते हैं। हर अमीर व्यक्ति ने क़दम आगे बढ़ाकर कहा है, ‘हाँ, मैं दौलत के इस भंडार में हिस्सा चाहता हूँ।’ जबकि ग़रीब लोग कहते हैं, ‘नहीं, मुझे नहीं, मैं इसके क़ाबिल नहीं हूँ। मैं इसका हक़दार नहीं हूँ। मैं इतना नहीं ले सकता। मुझे दौलत नहीं मिलनी चाहिए।’

तो यह पुस्तक इसी बारे में है। यह दौलत और दौलतमंद लोगों के प्रति आपके नज़रिए को चुनौती देगी। हम सब यह मान लेते हैं कि ग़रीब लोग अपनी परिस्थितियों, पृष्ठभूमि, माहौल, लालन-पालन के कारण ग़रीब होते हैं। लेकिन अगर आपके पास इस जैसी पुस्तक ख़रीदने के पैसे हैं और आप दुनिया में तुलनात्मक सुरक्षा व आराम से रहते हैं, तो आपके पास भी दौलतमंद बनने की सामर्थ्य है। यह मुश्किल हो सकता है, यह कठिन हो सकता है, लेकिन इसे किया जा सकता है। और यही पहला नियम है—कोई भी दौलतमंद बन सकता है, आपको बस इसका संकल्प लेना होगा और मेहनत के साथ अमल में जुटना होगा। बाक़ी सभी नियम अमल के बारे में हैं।

नियम-2

दौलत की अपनी परिभाषा तय करें


आपके लिए दौलत क्या है ? अगर आप दौलतमंद बनने जा रहे हैं, तो सबसे पहले तो आपको इस सवाल का जवाब खोज लेना चाहिए। मैंने देखा है कि दौलतमंद लोग शुरू करने से पहले ही दौलत की परिभाषा तय कर लेते है—हमेशा। उन्हें अच्छी तरह पता होता है कि उनकी नज़र में दौलत के मायने क्या हैं।

मेरा एक दौलतमंद और बहुत उदार मित्र है। वह कहता है कि बहुत पहले बिज़नेस शुरू करते समय ही उसने यह तय कर लिया था कि वह ख़ुद को दौलतमंद कब मानेगा। उसने संकल्प कर लिया कि जब वह अपनी इकट्ठी की हुई दौलत (जिसे हम उसकी पूँजी कहेंगे) से ख़र्च चलाएगा, तब वह ख़ुद को दौलतमंद नहीं मानेगा, जब वह अपनी पूँजी के ब्याज से ख़र्च चलाएगा। नहीं, वह तो ख़ुद को तब दौलतमंद मानेगा, जब वह अपनी पूँजी पर मिलने वाले ब्याज के भी ब्याज से अपना खर्च चलाएगा। मुझे तो यह परिभाषा बहुत अच्छी लगती है।

यह दोस्त अच्छी तरह जानता है कि उसके ब्याज पर कितना ब्याज मिल रहा है—हर घंटे। शाम को जब हम डिनर करने जाते हैं, तो वह जानता है (अ) डिनर का ख़र्च कितना है और (ब) डिनर की अवधि में उसने कितना व्याज कमाया है। वह कहता है कि जब तक (ब) (अ) से ज़्यादा है, तब तक वह ख़ुश है।

आपको लग सकता है कि यह दौलत की कुछ ज़्यादा ही ऊँची परिभाषा है। शायद आप इसे उतनी ऊँची तय न करना चाहें। ज़ाहिर है, इसमें कोई बुराई नहीं है। आप निश्चित धनराशि को दौलत का पैमाना बना सकते हैं। पुराने ज़माने में हर व्यक्ति मिलियनेअर बनना चाहता था। उस दौर में यह आसानी से पता चल जाता था कि आप लक्ष्य तक पहुँचे हैं या नहीं। आज की तारीख़ में बहुत से लोगों के मकानों की क़ीमत एक मिलियन से ज़्यादा है, लेकिन वे ख़ुद को दौलतमंद नहीं मानते हैं। वे अब तक अपने एंटीना को ऊपर उठाकर बिलियनेअर2 तक करने का साहस नहीं जुटा पाए हैं।

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2 माफ कीजिए, लेकिन बिलियन की मेरी परिभाषा एक मिलियन मिलियन है और मैं इसके अलावा किसी परिभाषा को मानने को तैयार नहीं हूँ।

तुलना के लिए मैं आपको अपनी परिभाषा बता देता हूँ : मेरे पास इतना होना चाहिए कि मुझे पर्याप्त पैसे होने के बारे में चिंता न करनी पड़े। पर्याप्त पैसे यानी कितने ? मुझे कभी पता नहीं होता। हमेशा इस बात की चिंता लगी रहती है कि ख़र्च ज़्यादा हो रहा है और आमदनी कम है। लेकिन गंभीरता से कहूँ, तो मुझे लगता है कि जब से मैंने पौंड के बजाय हज़ारों में गिनती शुरू की है, तब से मुझे ‘आराम’ है। मैं क़रीबी हज़ार तक जानता हूँ कि मुझे कितना मिला, मुझे कितने की ज़रूरत है और मैं कितना ख़र्च कर सकता हूँ।

कुछ लोगों के लिए पैसे की चिंता न करने का मतलब यह हो सकता है कि परिवार में किस आपातकालीन स्थिति से निबटने के लिए पर्याप्त पैसे रहें। तो आप इसे किस तरह परिभाषित करेंगे ? अपनी कारों की संख्या से ? नौकरों की संख्या से ? बैंक बैलेंस से ? अपने मकान की क़ीमत से ? निवेशों के पोर्टफ़ोलियो से ? ज़ाहिर है, कोई भी जवाब सही या ग़लत नहीं है, लेकिन मुझे यह ज़रूर लगता है कि जब तक आप दौलत की परिभाषा तय न कर लें, तब तक आपको आगे नहीं पढ़ना चाहिए। अगर हमारे पास कोई लक्ष्य ही नहीं है, तो हम निशाना नहीं साथ सते। अगर हमारे पास कोई मंज़िल ही नहीं है, तो हम घर से बाहर नहीं निकल सकते, वरना हम घंटों तक गोल-गोल चक्कर लगाते रहेंगे। अगर हमारे पास दौलत की परिभाषा ही नहीं है, तो हम अपनी सफलता की जाँच या मूल्यांकन कैसे करेंगे ? अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम यह कैसे जान पाएँगे कि यह पुस्तक आपके लिए मददगार साबित हुई है ?

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